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लफ़्ज़ का दरिया उतरा दश्त-ए-मआनी फैला / अब्दुल अहद 'साज़'

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लफ़्ज़ का दरिया उतरा दश्त-ए-मआनी फैला
मिस्रा-ए-ऊला ही में मिस्रा-ए-सानी फैला

कहीं छुपा होता है दवाम किसी लम्हे में
यूँ तो है सदियों पे जहान-ए-फ़ानी फैला

दानाई की दुनिया तंग है पेचीदा है
या-रब कुछ आसानी कर नादानी फैला

दामन-ए-तर ही में तो है अश्कों की नमी भी
रहने दे धरती पर यूँही पानी फैला

मँअफ़तें ही दर्ज हैं सब की फ़र्द-ए-अमल में
वरक़ कुशादा कर थोड़ी नुक़सानी फैला

किरदारों की पहचानें गुम होने लगी हैं
मेरे लेखक इतना भी न कहानी फैला