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लफ्जों की अलमारियाँ खोलने वाला आदमी / कुमार कृष्ण
Kavita Kosh से
वह जब भी आता है-
हम अक्सर कविता पर बात करते हैं या फिर किसी
नयी पुस्तक के आने की खबर के बारे में
उसके पास हमेशा होते हैं नये-नये जूते
तरह-तरह की कमीजें
उसे कोट से शायद सख्त नफरत है
इसीलिए वह लटका रहता है हमेशा
उसकी कविता की खूँटी पर
वह नहीं छुपाना चाहता किसी चीज को
बटनों की आड़ में
वह जानता है अच्छी तरह
कौन-सा बटन कब छोड़ जाए साथ क्या पता
वह जानता है-
लफ्ज़ों की अलमारियाँ खोलने की कला
उसे मालूम है
जिस दिन हो जाएँगी बन्द
लफ्ज़ों की अलमारियाँ
बंजर हो जाएगी उस दिन पूरी पृथ्वी
कोई नहीं खटखटाएगा किसी का दरवाजा
मुझे उसका बार-बार दरवाजा खटखटाना
बेहद अच्छा लगता है।