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लबों पर गिले यूं भी आते रहे हैं / देवी नागरानी

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लबों पर गिले यूं भी आते रहे हैं
तुम्हारी जफ़ाओं को गाते रहे हैं

कभी छाँव में भी बसेरा किया था
कभी धूप में हम नहाते रहे हैं

रहा आशियां दिल का वीरान लेकिन
उम्मीदों की महफ़िल सजाते रहे हैं

लिये आँख में कुछ उदासी के साये
तेरे ग़म में पलकें जलाते रहे हैं

ज़माने से ‘देवी’ न हमको मिला कुछ
ज़माने से फिर भी निभाते रहे हैं