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लबों पे ये हल्की सी / कुलवंत सिंह
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लबों पे ये हल्की सी लाली जो छायी।
हमारी है लगता तुम्हें याद आयी॥
ख़ुदा ने नवाज़ा करम से है हमको,
हमारी इबादत है उसको तो भायी।
हथेली पे सच रख मै चलता हूँ लेकर,
न भाती जहां को ये सच से सगाई।
ज़मीं है भरी पापियों के कदम से,
कहाँ है ख़ुदा जिसने दुनिया बनाई।
बशर हर यहाँ बोल मीठा ही चाहे,
भले चाशनी में हो लिपटी बुराई।
हमें कह के अपना न तुम यूँ सताओ
चले जाते तुम हमको आती रुलाई।
गिरे शाख से फूल जब कोई टूटे,
जुड़े कैसे कुलवंत जग हो हंसाई।