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लब्बोॅ घोॅर उठाबोॅ / मृदुला शुक्ला
Kavita Kosh से
बस्ती नया बसाबोॅ तोंय!
सबमें प्रेम समुन्दर होय केॅ
देश-देश लहराबोॅ तोंय!
लब्बोॅ मानवतै के नै बस
लब्बोॅ भारत रोॅ आशा छोॅ,
संघरषोॅ के कोलाहल में
प्रेम-प्यार रोॅ तों भाषा छोॅ,
सब तोरा में, तोंय सब्भे में
ई सोची हरसाबोॅ तोंय!
बस्ती नया बसाबोॅ तोंय!
छल-प्रपंच या जाति-धरम सें
हार नै कभियो मानयौ तोंय;
भटकी-भूली जे गेलोॅ छै
राह नया दिखलैयौ तोय;
अन्धेरा छै पापोॅ केरोॅ
दिया पुण्य के बारोॅ तोंय
बस्ती नया बसाबोॅ तोंय!
अभी अधूरा सपना हमरोॅ,
आधे छै जय रोॅ अभियान,
तोरे हाथें विजय-पताका,
तोरहै पर देशोॅ केॅ शान;
राह चुनौती सें भरलोॅ छौं
धजा-शान्ति फहराबोॅ तोंय!
बस्ती नया बसाबोॅ तोंय!
सबमें प्रेम समुन्दर होय केॅ
देश-देश लहराबोॅ तोंय!