भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लब-ए-शीरीं है मिस्री यूसुफ़-ए-सानी है ये लड़का / शाकिर 'नाजी'
Kavita Kosh से
लब-ए-शीरीं है मिस्री यूसुफ़-ए-सानी है ये लड़का
न छोड़ेगा मेरा दिल चाह-ए-कनआनी है ये लड़का
लिया बोसा किसी ने और गिरेबाँ-गीर है मेरा
डुबाया चाहता है सब को तूफानी है ये लड़का
सर ऊपर लाल चेरा और दहन जूँ गुंचा-ए-रंगीं
बहार-ए-मुद्दआ लाल-ए-बदख़शानी है ये लड़का
क़यामत है झमक बाजू के तावीज़-ए-तलाई की
हिसार-ए-हुस्न कूँ काइम किया बानी है ये लड़का
हुए रू-पोश उस का हुस्न देख अंजुम के जूँ खूबाँ
चमकता है ब-रंग-ए-मेहर नूरानी है ये लड़का
क़यामत क़ामत उस का जिन ने देखा सो हुआ बिस्मिल
मगर सर ता क़दम तेग़-ए-सुलेमानी है ये लड़का
मैं अपना जान ओ दिल क़ुर्बां करूँ उस पर सेती ‘नाजी’
जिस देखें सीं होए ईद रमज़ानी है ये लड़का