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लब पे पाबन्दी नहीं एहसास पे पहरा तो है / साग़र ख़य्यामी
Kavita Kosh से
लब पे पाबन्दी नहीं एहसास पे पहरा तो है
फिर भी अहल-ए-दिल को अहवाल-ए-बशर कहना तो है
अपनी ग़ैरत बेच डालें अपना मसलक़ छोड़ दें
रहनुमाओं में भी कुछ लोगों को ये मन्शा तो है
है जिन्हें सबसे ज़्यादा दावा-ए-हुब्ब-ए-वतन
आज उनकी वजह से हुब्ब-ए-वतन रुसवा तो है
बुझ रहे हैं एक एक कर के अक़ीदों के दिये
इस अँधेरे का भी लेकिन सामना करना तो है
झूठ क्यूँ बोलें फ़रोग़-ए-मस्लहत के नाम पर
ज़िन्दगी प्यारी सही लेकिन हमें मरना तो है