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लमहे कुछ अपनी हथेली से फिसल जाते हैं / भवेश दिलशाद

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लमहे कुछ अपनी हथेली से फिसल जाते हैं
और कई दिल इसी फिसलन से बहल जाते हैं

कौन सी आग में जलते हैं बताएं क्या हम
जबकि जलना है कोई आग हो जल जाते हैं

झील नीली है गगन नीला ये आँखें नीली
ऐसे शीशों में तमाम आब संभल जाते हैं

रेत पर बैठ के लहरों को गिना मत कीजै
हौसले टूटते हैं रेत में ढल जाते हैं

चाँद मुल्ज़िम है तो शायर है वक़ीले-सफ़ाई
वो दलीलें हैं कि सब दाग़ निकल जाते हैं