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लमहों की जागीर लुटा कर बैठे है / फ़रहत शहज़ाद
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लमहों की जागीर लुटा कर बैठे है
हम घर की दहलीज़ पे आ कर बैठे है
लिखने को उनवान कहाँ से लाये अब
काग़ज़ से एक नाम मिटा कर बैठे है
हो पाए तो हँस कर दो पल बात करो
हम परदेसी दूर से आ कर बैठे है
उठेंगे जब दिल तेरा भर जायेगा
ख़ुद को तेरा खेल बना कर बैठे है
जब चाहो गुल शम्मा कर देना 'शहज़ाद'
हम अंदर का दीप जला कर बैठे है