लम्बा रास्ता / शलभ श्रीराम सिंह
जब भी छोटा हुआ है मेरा रास्ता
बड़ा कर लिया है उसे मैंने अपने आप
ख़त्म होते रास्ते को बढ़ा देना
चढ़ा देना ख़ुद को पहाड़ पर
बचपन में सीख लिया था मैंने यों ही
लम्बा रास्ता लम्बे उजालों-अन्धेरों से गुजरता है
उतरता है खाइयों-समन्दरों-खाड़ियों में बेफ़िक्र
बेसहारा करके ख़ुद पर भरोसा करने के क़ाबिल बना देता है
बना देता है प्रत्यंचा से छूटा हुआ तीर
धीर-वीर-गंभीर बना देता है लम्बा रास्ता
ज़िन्दगी के सफ़र में छोटे रास्तों की बात मत सुनो
चलने का सवाल आए जब भी
चुनो अपने लिए लम्बा रास्ता ...लम्बा रास्ता केवल
रचनाकाल : 1994, विदिशा
शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।