लम्स1 की आंधियों से जो डर जायेंगे
क़ुर्ब2 के सारे मंज़र3 बिखर जायेंगे .
रात दरबान बनकर रहेगी मगर
दिन निकलते ही ख़्वाब अपने घर जायेंगे .
सांसों के डूबते उगते सूरज लिये
उम्र की सरहदों से गुज़र जायेंगे .
जिस्म की रिश्वतें देंगे बरसात को
फिर नये पत्ते लाने शजर जायेंगे .
उसकी यादें न कर दरबदर ऐ 'कँवल'
बेठिका ने ये मंज़र किधर जायेंगे .
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