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लम्हों के चिराग़ / अली सरदार जाफ़री

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वो नींद की तरह नर्म सब्ज़ा
ख़्वाबों की तरह रमीदा१ शबनम
फूलों की तरह शिगुफ़्ता चेहरे
खुशबू की तरह लतीफ़ बातें
किरनों की तरह जवाँ तबस्सुम
शो’ले की तरह दहकती ख़्वाहिश
तारों की तरह चमकती आग़ोश
साग़र की तरह छलकते सीने
सब क़ाफ़िला-ए-अदम२ के राही
वादि-ए-अदम में चल रहे हैं
तारीकियों कि खुले हैं परचम
लम्हों के चिराग़ जल रहे हैं
हर लम्हा हसीं और जवाँ है
हर लम्हा फ़रोग़े-जिस्मों-जाँ है
हर लम्हा अज़ीमो-जाविदाँ है



१.भागा हुआ २.परलोक जानेवाला क़ाफ़िला ३. शरीर और प्राण का प्रकाश ४.महान और शाश्वत।