भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लय (दो) / हरीशचन्द्र पाण्डे
Kavita Kosh से
जो उखाड़ा गेन्दे के फूल को तो देखा
जड़ें अभी कई फूल खिलाने को हैं
उजाड़ने की लय में यह भूल ही गया
ये फूल हैं आदमी नहीं ।