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लरज़ रहा है दिल-ए-सोगवार आँखों में / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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लरज़ रहा है दिल-ए-सोगवार आँखों में
खटक रही है शब-ए-इन्तिज़ार आँखों में!

ज़रा न फ़र्क़ ख़ुदी और बेख़ुदी में रहा
न जाने क्या था तिरी मयगुसार आँखों में

ये दर्द-ए-दिल नहीं,है बज़गस्त-ए-महरुमी
ये अश्क-ए-ग़म नहीं, है ज़िक्र-ए-यार आँखों में

सुरूर-ए-ज़ीस्त से खाली नहीं ख़िज़ां हर्गिज़
मगर है शर्त रची हो बहार आँखों में

ज़रा ज़रा से मिरे राज़ खोल देता है
छुपा है कौन मिरा राज़दार आँखों में?

मक़ाम-ए-शौक़ की सरमस्तियां, अरे तौबा!
सुरूर-ए-आशिक़ी दिल में ख़ुमार आँखों में

क़दम क़दम पे तिरी याद गुल खिलाती है
यह किसने भर दिया रंग-ए-बहार आँखों में?

नबर्द-आज़मा दुनिया से क्या हुआ "सरवर"
कुछ और बढ़ गया अपना वकार आँखों में!