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ललद्यद के नाम-1 / अग्निशेखर
Kavita Kosh से
तुमने समय के तन्दूर में मारी छलांग
और उदित हुई तन ढककर
स्वर्ग के वस्त्रों में
बिखेरते हुए बर्फ़-सा प्रकाश कहा तुमने,
'कौन मरेगा और मारेंगे किसको'
तन्दूर में तुम्हारे कूदने
और उसमें से निकलने के बीच की वेला में
शताब्दियों के बाद
आज फिर तप रही है तुम्हारी सन्तान
विकल्प की आग में छलांग है हमारा निर्वासन
और उसके फुफकारते फनों पर
लास्य-नृत्य करते हुए
तुम्हारा प्रादुर्भाव है हमारा स्वप्न