भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ललना, द गेलै अपन दोहाइ, नैहरबा जानु जाहो रे / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पति परदेश जाते समय छोटे बच्चे के लिए खटोला बनवा गया, पत्नी को समय काटने के लिए चरखा दे गया और अपनी अनुपस्थिति में नैहर नहीं जाने की हिदायत भी कर गया। उसके परदेश गये बहुत दिन हो गये। अब बच्चा बड़ा हो गया। मुंडन करना अनिवार्य हो गया है। बहू अपनी सास से सलाह करती है कि किन-किन लोगों को निमंत्रित किया जाए। सास सबके नाम क्रम से बतला देती है, लेकिन बहू ननद को निमंत्रित नहीं करना चाहती। उसके आने पर उसे बधैया देने को बाध्य होना पड़ेगा। सभी निमंत्रित होकर आते हैं। ननद भी अपने पुत्र के साथ आ जाती है।
यह संभव है कि पति-प्रवास के कारण आर्थिक कठिनाई से भाभी ननद को बधैया देने में असमर्थ हो या आदिकाल से चले आ रहे ननद-भाभी के मतभेद के कारण वह उसे बुलाना नहीं चाहती। चरखा देना केवल समय काटने के लिए ही नहीं वरन् आर्थिक कठिनाई आने पर जीवन-निर्वाह में सहायक होने का भी संकेत करता है। अपनी शपथ देकर मायके जाने से मना करना केवल प्रतिष्ठा की रक्षा का संकेत है। वहाँ जाने पर लोग उसकी निर्धनता की हँस उड़ायेंगे कि पति परदेश गया है और यह निर्वाह करने मायके आई हुई है।

द गेलै<ref>दे गया</ref> खाट खटोलबा, कि सोने के चरखबा<ref>चरखा</ref> रे।
ललना, द गेलै अपन दोहाइ, नैहरबा जानु जाहो रे॥1॥
टुटि गेलै खाट खटोलबा, कि सोने के चरखबा रे।
ललना रे, छुटि गेलै हुनि<ref>उनका; यहाँ ‘उनका’ से तात्पर्य उसके ‘पति’ से है; क्योंकि भारतीय नारी अपने पति का नाम नहीं लेती</ref> के दोहाइ, नैहर अब जायब रे॥2॥
मचिया बैठल तोहें सासु, कि सासु सेॅ अरज करु रे।
ललना रे, करब में होरिला के मूड़न, कि कहाँ रे कहाँ नेवतब रे॥3॥
पहिने<ref>पहले</ref> जे नेतिहऽ<ref>निमंत्रित करना</ref> देबलोक, तबै पितरलोक रे।
ललना रे, तबै जे नेतिहऽ नैहरलोक, तबै समाजलोक रे॥4॥
पहिने जे नेतब देबलोक, तबै पितरलोक, आरु सभे लोक रे।
ललना रे, एक नहीं नेतब ननद दाइ<ref>घर की बेटी के लिए प्रयुक्त प्यार का संबोधन</ref>, जिनि रे बधैया माँगे रे॥5॥
पहिने जे अयला नैहरलोक, तबै समाजलोक रे।
ललना रे, लाली दोली<ref>डोली</ref> आबै छै ननदिया, नील घोड़ भगिनमा रे॥6॥

शब्दार्थ
<references/>