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ललित कलित कुसुमिति वन फूले पपिहा धूम मावे री / महेन्द्र मिश्र

ललित कलित कुसुमिति वन फूले पपिहा धूम मावे री।
हरि लतान बितान सुहावन नव पललव द्रुम डोले री।
त्रिबिध समीर बहे निसि बासर सुभ अवसर अनमोले री।
द्विज महेन्द्र जिव मानत नाहीं कमलन के दल खोले री।