ललित कुमार / परिचय
ललित कुमार का जन्म 6 जनवरी, 1995 ई0 (वार- शुक्रवार, तिथि- छठी, मास- पोष, शुक्ल पक्ष- सुदी, नक्षत्र- पूर्वभाद्रपदा, राशि- मेष, योग- व्यतापता, विक्रम-संवत 2051) को गांव व तह.- बवानी खेड़ा, जिला- भिवानी (हरियाणा) के एक मध्यम वर्गीय 'लौर-गुर्जर परिवार' मे हुआ। इनके पिता का नाम श्री हवासिंह व माता का नाम सुनहेरी देवी था। इनके पिता एक एकड़ जमीन के मालिक थे और इसी भूमि पर कृषि करके अपने परिवार का भरण-पोषण करते थे। इनके पिता दो भाई थे- जिनमे बड़े का नाम श्री हवासिंह व छोटे का नाम श्री छत्रपाल। होनहार कवि ललित कुमार 20 वर्ष की उम्र में गांव व तह. हांसी- जिला हिसार (हरियाणा) में श्रीमती सुमन देवी के साथ वैवाहिक बंधन मे बंधे। इनकी शैक्षिक योग्यता बारहवी पास तक ही रही। परन्तु गीत-संगीत की लालसा ईनमे बचपन से ही थी, क्यूंकि इनके दादा श्री नारायण सिंह धार्मिक प्रवृति के थे, जो गाँव के छोटे-बड़े सामान्य उत्सव में वे मनोरंन के तौर पर गाना-बजाना भी करते थे और वे सांग विधा के बहुत ही शौक़ीन थे। वे ज्यादातर हरियाणा के शेक्सपियर सुर्यकवि प. लख्मीचंद व कवि शिरोमणि मांगेराम जी के सांगो में बहुत ही रूचि रखते थे, जिसके कारण उनको इन दोनों महान कवियों के सांग लगभग कंठस्थ थे, जो सांग उस समय में प्रचलित थे। इस प्रकार अपने दादा के मुखाश्रित से हुए गीतों की पंक्तियों को सुनकर होनहार कवि ललित कुमार उन्ही को गुन-गुनाकर अपना समय यापन करते-रहते थे। उसके बाद 10-12 वर्ष की आयु तक पहुँचते-पहुँचते उन्हें कर्णरस एवं गीत श्रवण की ऐसी ललक लगी कि अपने गाँव और आसपास की तो बात ही क्या, वे कोसों-मीलों दूर जाकर भी सांगी-भजनियों के कर्ण-रस द्वारा उनके कंठित भावों के आनंद को अपने अन्दर समाहित करते रहे। फिर उम्र बढ़ने के साथ-साथ सांग के प्रति उनकी आसक्त भावना मे इस प्रकार वृद्धि हुई कि सांग व रागनी प्रोग्राम देखने के लिए बिना बताएं और झूठ बोलकर पूरा-पूरा दिन घर से गायब रहने लगे। इस प्रकार सांग से लालायित उनका जीवन अपनी जन्मभूमि के लगाव मे ही रहा। इन्ही दिनों फिर ललित कुमार के जीवन मे पुराना अध्याय ख़त्म होने के साथ-साथ एक नऐ अध्याय के अंकुर अंकुरित हुए क्यूंकि इस समय इनके दादा नारायण सिंह का स्वर्गवास हो गया था और उनके सबसे प्रिय पौत्र बालक ललित कुमार के सिर से उनका साया उठ गया था, जिसके कारण वह शास्त्रीय ज्ञान व संगीत लालसा में काफी दिनों तक इधर-उधर भटकता रहा। फिर सौभाग्य एवं सयोंगवश किशोरायु ललित कुमार की अल्पायु मे ही उन्ही के गाँवों में सुप्रसिद्ध गायक व शास्त्रीय ज्ञाता श्री जगदीश तंवर से भेंट हुई, जो गुरु चन्द्रनाथ के शिष्य है, जो इनके दादा गुरु भभुलनाथ के शिष्य है, इस तरह इनकी शुरू से ही नाथो की प्रणाली रही है। फिर उसके बाद तो बालक ललित कुमार वैदिक ज्ञान के लिए लालायित होकर बिना बताये ही घर से श्री जगदीश जी के सत्संग सुनने के लिए पूरा-पूरा दिन उनके पास रहने लगे, क्यूंकि बचपन से ही गाने-बजाने के शौक के कारण वे श्री जगदीश जी के सत्संगो को सुनने के बड़े ही दीवाने थे। इसलिए बचपन से ही गाने-बजाने के चाव एवं लगाव के कारण उस समय के सुप्रसिद्ध सत्संगी जगदीश जी के प्रति आकर्षित होना स्वाभाविक था। फिर एक दिन श्री जगदीश तंवर जी ने सत्संग करते हुए उनकी सरस्वतिमयी कंठ-माधुर्य ने उस किशोरायु ललित का ऐसा मन मोह लिया, कि वहीँ पे उन्होंने श्री जगदीश तंवर जी को अपना गुरु धारण करके हर रोज उनकी सत्संग मंडली आनंद उठाने लगे। फिर तो बालक ललित कुमार लगातार गुरु जगदीश के सानिध्य में रहने लगे और उनकी पौराणिक ज्ञान वर्षा में भीगकर उनके सत्संग का आनंद उठाने लगे। उसके बाद तो फिर गुरु जगदीश तंवर ने अपने शिष्य बालक ललित की उम्र के लिहाज से उनकी जबरदस्त स्मरण शक्ति एंव वैदिक रूचि के कारण आत्मीय ज्ञान को देखते हुए उन्होंने अपनी गुरु कृपा से बहुत जल्द ही पौराणिक ज्ञान में पारंगत कर दिया और बालक ललित ने फिर गुरु के आशीर्वाद से अपने आत्मीय ज्ञान से फिर साहित्यिक कला मे निपुणता प्राप्त कर ली। इस तरह अपने गुरु जगदीश की इस बहुत ही सहजता एवं कोमल हर्दयता को देखकर अपनी गीत-संगीत व ज्ञान पिपासा को बुझाने हेतु, वे अपने गुरु जगदीश जी के साथ ही अधिकतम समय व्यतीत करने लगे। उसके बाद उन्होंने कई महीनो तक पूरी निष्ठां एवं श्रद्धा से गुरु की सेवा करके अत्यधिक शास्त्रीय ज्ञान अर्जित करके अपनी इस सतत साधना और संगीत की आत्मीय पिपासा को पूरा किया। इस प्रकार फिर गुरु जगदीश के सत्संग व उनके सिर्फ आशीर्वाद से ही शिष्य ललित कुमार अपनी लेखन कला मे बहुत जल्द ही पारंगत हो गए। उसके बाद प्रथम बार इन्होंने सन 2009 ई0 में अपनी 9वीं क्लास से छोटी-मोटी रचनाओं को लिखना शुरू कर दिया और इन्होंने सर्वप्रथम अपनी सम्पूर्ण व शुद्ध रचना सन 2010 ई. 10वीं क्लास में लिखी। अब उन्होंने इस लेखन कार्य को आज तक विराम नहीं दिया।