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लहकै ग्रीष्म सरंग में / कुमार संभव
Kavita Kosh से
आगिन नांकी लहकै ग्रीष्म सरंग में
केकरौह न बूझै उमंग में,
लू बनी दौड़ै, खोजै रानी बरखा केॅ
दिवाना छै, बस अपन्हेॅ रंग में।
तनलोॅ शिकारी नांकी
किरणोॅ के वाण छै,
तापोॅ में तपलोॅ छै
आकुल मन प्राण छै,
हँपसै छै बाघिन सुरंग में।
चिड़िया खोजै छाया छै
अजब ग्रीष्म के माया छै,
हवा डाकिनी हफकै लेॅ दौड़ै
भरलोॅ घामोॅ से काया छै,
बीतै रात चाँदनी संग में।