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लहराता है ख़्वाब-सा आँचल और मैं लिखता जाता हूँ / जावेद सबा
Kavita Kosh से
लहराता है ख़्वाब सा आँचल औंर में लिखता जाता हूँ
पलकें नींद से बोझल और मैं लिखता जाता हूँ
जैसे मेरे कान में कोई चुपके चुपके कहता है
इश़्क जुनूँ है इश़्क है पागल और मैं लिखता जाता हूँ
छोटी छोटी बात पे उस की आँखें भर भर आती हैं
फैलता रहता है फिर काजल और मैं लिखता जाता हूँ
आँख में उस के अक्स की आहट दस्तक देती रहती है
भर जाती है अश्क से छागल और मैं लिखता जाता हूँ
मद्धम मद्धम साँस की ख़ुश-बू मीठे मीठे दर्द की आँच
रह रह के करती है बे-कल और मैं लिखता जाता हूँ
धीमे सुरों में दर्द का पंछी अपनी धुन में गाता है
प्यासी रूहें प्यास का जंगल और मैं लिखता जाता हूँ
उस के प्यार की बूँदें टप टप दिल में गिरती रहती हैं
नर्म गुदाज़ ओ शोख़ ओ चंचल और में लिखता जाता हूँ