भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लहरें / सुभाष शर्मा
Kavita Kosh से
यह जानते हुए भी
कि गिरना है अन्ततः
बार-बार उठती हैं लहरें
देती हैं खुली चुनौती काल को
और नीचे जाकर नापती हैं गहराई
लोग लहरें देखकर भी
क्यों डरते हैं गिरने से ?