केवल आँख में ही नहीं होता जल
स्वर-ताल भी देखो
कैसे जल-तरंग-सी
लहरिया जाती है आधी रात
सुखा कर लहरों की चादर को
फैला देती बहती हवा
सवेरे दिखता है
फिर वही रेगिस्तान
संजोए छाती में
अपनी लहरों की बात।
केवल आँख में ही नहीं होता जल
स्वर-ताल भी देखो
कैसे जल-तरंग-सी
लहरिया जाती है आधी रात
सुखा कर लहरों की चादर को
फैला देती बहती हवा
सवेरे दिखता है
फिर वही रेगिस्तान
संजोए छाती में
अपनी लहरों की बात।