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लहरों में आग रुपहली / राजेन्द्र प्रसाद सिंह

लहरों में आग रुपहली,
ओSS पुरवाई!
एक मौन की धुन से
हार गई शहनाई।

जामुनी अंधेरे की,
गजरीली बाहों में,
एक नदी कैद है निगाहों में।
रूठ नहीं पाती-
इन साँसों पर झुकी हुई परछाई।

चाँद बिना आसमान
डूब गया धारा में,
लहक भी न उठती
तो हाय! क्यों न बुझती
अब इन ठंडे शोलों की अंगड़ाई।