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लहर-लहर आवार्गियों के साथ रहा / सरवत हुसैन
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लहर-लहर आवार्गियों के साथ रहा
बादल था और जल-परियों के साथ रहा
कौन था मैं ये तो मुझ को मालूम नहीं
फूलों पŸाों और दियों के साथ रहा
मिलना और बिछड़ जाना किसी रस्ते पर
इक यही क़िस्सा आदमियों के साथ रहा
वो इक सूरज सुब्ह तलक मिरे पहलू में
अपनी सब नाराज़गियों के साथ रहा
सब ने जाना बहुत सुबुक बेहद शफ़्फ़ाफ़
दरिया तो आलूदगियों के साथ रहा