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लहर-लहर नदिया लहरे / ब्रजमोहन

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लहर-लहर नदिया लहरे पानी बल खाए रे
आसमान छूने को हर लहर ललचाए रे

पानी नहीं अपने ही बस में रे आज भाई
सारी दुनिया पे जैसे करेगा ये राज भाई
बिजली-सी बादलों की आँख में जलाए रे ...

मछली-सी ज़िन्दगी न जानी भेद जाल का
बनी है निशाना रे मछुवारों की ही चाल का
सागर में कैसे नहीं तूफ़ान आए रे ...

पानी सूख जाएगा तो कहाँ होगा जीवन
धड़केगा कैसे किसी सीने में कोई मन
पानी ही तो ज़िन्दगी का गीत सुनाए रे ...

पानी ने रे सबकी ही प्यास बुझाई
पानीदार आँखें कभी रोई नहीं भाई
कश्ती को पानी अपने कान्धे पे उठाए रे ...

पानी नदी, ख़्वाब पानी, पानी है समन्दर
एक पूरी दुनिया है पानी के अन्दर
आग बिना पानी कैसे प्यास बुझाए रे ...