Last modified on 26 मई 2011, at 16:59

लहर की नमी / माया मृग


एक नन्ही सी लहर उठी,
सूरज की पहली किरण
सी चमकी।
मासूम, भोली, अनजान,
अल्हड़ !
मैंने अपना सा जान
हाथ बढ़ाया, हौले से छुआ .....
कि वह लहर ....
सकुचाई-शरमाई और
पूरी मासूमियत के साथ
शांत धारा की चूनर ओढ़
धीमे-धीमे चल दी,
नवोढ़ा सी।
मेरे हाथों में
उसके एहसासों की नमी है बस
वरना
यूं खामोश सागर को देख
विश्वास करना कठिन है कि
इसमें कोई
लहर उठी भी थी।