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लाख इस दिल को रोका हमने / रविकांत अनमोल

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लाख इस दिल को रोका हमने
फिर भी उनको सोचा हमने
            
लहरों के मेले में हर दम
ख़ुद को रक्खा प्यासा हमने
            
उनको दिल ही दिल में चाहा
जिनसे खाया धोका हमने
            
अपने दिल के अन्दर बाहर
ख़ुद को कितना ढ़ूँडा हमने
            
सपनों की सच्चाई क्या है
आँख खुली तो जाना हमने
            
सच्चाई की राह में मीलों
ख़ुद को पाया तन्हा हमने
            
दुनियादारी से नावाक़िफ़
दिल पाया दीवाना हमने
            
जब अपनी पहचान गँवा दी
तब उसको पहचाना हमने
            
उतना कौन किसे चाहेगा
जितना उनको चाहा हमने