भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाख बलाये एक नशेमन / जिगर मुरादाबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कोई ये कह दे गुलशन गुलशन
लाख बलाये एक नशेमन

कामिल रहबर क़ातिल रहज़न
दिल सा दोस्त न दिल सा दुश्मन

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
लेकिन अपना अपना दामन

उम्रें बीतीं सदियाँ गुज़रीं
है वही अब तक अक़्ल का बचपन

इश्क़ है प्यारे खेल नहीं है
इश्क़ है कार-ए-शीशा-ओ-आहन

ख़ैर मिज़ाज-ए-हुस्न की या रब!
तेज़ बहुत है दिल की धड़कन

आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की शब और इतनी रौशन

तू ने सुलझ कर गेसू-ए-जानाँ
और बड़ा दी दिल की उलझन

चलती फिरती छाओं है प्यारे
किस का सहरा कैसा गुलशन

आ कि न जाने तुझ बिन कब से
रूह है लाश जिस्म है मदफ़न

काम अधूरा और आज़ादी
नाम बड़े और थोड़े दर्शन

रहमत होगी ग़लिब-ए-इसियाँ
रश्क करेगी पाकी-ए-दामन

काँटों का भी हक़ है कुछ आख़िर
कौन छुड़ाये अपना दामन