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लाख हमको भला-बुरा कहिए / कांतिमोहन 'सोज़'
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लाख हमको भला-बुरा कहिए ।
पर हमारी है क्या ख़ता कहिए ।।
आस्तां छोड़के न जाएँगे
कहिए हमको बुरा-बुरा कहिए ।
जान जाएँगे जानने वाले
आप हर ज़ुल्म को जज़ा<ref>ईनाम</ref> कहिए ।
दार पे जो दिए जलाता हो
ऐसे सरकश<ref>बाग़ी</ref> को क्या भला कहिए ।
बाद मुद्दत के दिन ये आया है
आज ख़ंजर को मरहबा<ref>एक बार फिर</ref> कहिए ।
क्यूँ न हम मसख़री की खू<ref>आदत</ref> डालें
ग़म ने हमको दिया है क्या कहिए ।
सोज़ बोसीदा हो चले हैं आप
कुछ फड़कता हुआ नया कहिए ।।
शब्दार्थ
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