भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाचार / कविता वाचक्नवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लाचार


देवताओं!
क्यों तुम सदा से
लाचार रहे इतने
कि तुम्हारे अग्निहोत्र की पवित्रता
भ्रष्ट कर गया अधम राक्षस कोई
और तुम
पुकारते रहे किसी द्वार जाकर
सहायता के मंत्र
और क्यों
हर बार, सीता को निमित्त बना
रामों को करना पड़ता है
दुष्टों के संहार का अध्यवसाय?