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लाठी के लिए कविता / हो ची मिन्ह
Kavita Kosh से
रही तनी और अनम्य
जब तक रही मेरे साथ
लिए हाथों में हाथ
कितने मौसम
कुहरे भरे और तूफ़ानी
बिताए हमने साथ-साथ
भुगतेगा उचक्का वह
जिसने किया हमें अलग
सालेगी बरसों बरस
टीस यह लासानी