भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाठी पीटे, अलग न होगी काई मेरे भाई / यश मालवीय
Kavita Kosh से
लाठी पीटे ,अलग न होगी
काई मेरे भाई
कुछ भी कर लें, जी लें , मर लें
देश भक्त दंगाई
इसको उसको चाहे जिसको
कर लेते हैं अगवा
कैसा रंगों का संयोजन
हुआ तिरंगा भगवा
बड़े-बड़े अवतारों की है
नई-नई प्रभुताई
लोकसभा से राजसभा तक
खादी पहनें चीलें
ठोंक रही हैं प्रजातंत्र के
माथे पर ही कीलें
खून थूकते पर्वत झरने
घाटी और तराई
अट्टहास करता सिंहासन
काँप रहा मतदाता
पटक रहा सिर, पागलख़ाने
में ख़ुद बुद्धि प्रदाता
इसके-उसके बाल बनाता
समय हुआ ख़ुद नाई