भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लापता लोग / अरविन्द श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कसूर क्या था रात का
जिसे हाँका गया रोशनी से
मैंने हृदय की खिड़कियाँ खोल रखी थीं
कोई गुलाब फेंक कर चला गया था
अक़्सर नींद में वे
ठोकते हैं कील
दीवार पर
लापता हुए लोग
लंबे वक़्त तक मुश्किल पैदा करते हैं
फ़ोन की घंटी बजती है और वे चहक सामने आते हैं
जो रखते हैं अपना मोबाइल स्वीच-ऑफ़
उन्हें भी मैं इसी सूची में करता हूँ शामिल ।