लामहाला<ref>लाचार होकर</ref> आईने के सामने जाता हूँ मैं।
एक अजब से आदमी को घूरते पाता हूँ मैं।।
गो समझता हूं कि कुछ भूला न भूलूँगा कभी
जबकि सच ये है कि सब-कुछ भूलता जाता हूँ मैं।
क्यूँ मेरी ख़्वाहिश न हो हर सिम्त हो अम्नोअमान
हो किसी की भी ख़ता सबकी सज़ा पाता हूँ मैं।
इश्क़ उलझन है अजब उलझन है इसका क्या करूँ
जब इस उलझन से निकलता हूं तो फँस जाता हूँ मैं।
जाने किसका घर जला दें बिजलियों को क्या पता
होके बेघर सोचता हूं और घबराता हूँ मैं।
ये गली है तंग इसमें दो की गुंजाइश कहाँ
ख़ुद को गुम पूरी तरह करके उसे पाता हूँ मैं।
कजदाई<ref>रूखापन</ref> बेनियाज़ी<ref>उपेक्षा</ref> बदगुमानी<ref>बुरी राय रखना</ref> बरहमी<ref>नाराज़गी</ref>
गोया उसकी हर नवाज़िश भूलता जाता हूँ मैं।।
31-1-1997
शब्दार्थ
<references/>