लालच रोॅ फोॅल / अमरेन्द्र
अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो
अस्सी-नब्बे पूरे सौ ।
सौ पैसा के टाका एक
वैमें पड़लै डाका एक
डाका में डाकू चालीस
चललै मारा-मारी ढीस
जे छेलै वैमेॅ सरदार
ऊ तेॅ आरो भी खूँखार
उनचालीस केॅ देलकै मार
वहीं लुढ़कलै वैमेॅ चार ।
बाकी जे बचलै पैंतीस
सरदारोॅ पर झाड़ै रीस
ऐलै सरदारोॅ केॅ गुस्सा
दस केॅ देलकै दस-दस घुस्सा
घुस्सा खाय केॅ दसो चितांग
कहीं पेॅ मूड़ी, कहीं पेॅ टांग ।
ई देखी पच्चीस बेहाल
तहियो सब ठोकै छै ताल
सब्भे केॅ टाक्है पर ध्यान
बेची देलकै लाज-गरान
सरदारौं हौ देलकै ढीस
वहीं पेॅ गिरलै फट-फट बीस ।
आबेॅ जे बचलोॅ छै पाँच
जान बचाय लेॅ नाचै नाँच
सरदारें फूकै छै बीन
ताक धिनक-धिन, धिन-धिन-धिन
नाँचतें-नाँचतें गिरलै तीन
सरदारोॅ केॅ ऐलै नीन ।
बचलोॅ दुए डकैत छै
दोनों बड़ी लठैत छै
टाका वास्तें खाँव-खाँव-खाँव
कुत्ता नाँखी झाँव-झाँव-झाँव
दोनों करै छै फन-फन-फन
चललै लाठी दन-दन-दन ।
गिरलै पट-पट दोनों ठो
अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो
दादी बोलै हकाय-हकाय
लोभी सब केॅ छकाय-छकाय
अस्सी-नब्बी पूरे सौ
धोॅन पकड़बै, मरबे जो ।