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लालटेन जरी ना भभकी / विनय राय ‘बबुरंग’

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जब से आजादी मिलल
तब से अपना जिनिगी में
बहुत कुछ देखे आ सूने के मिलल
बाकी जेवन भगत सिंह देखले रहलीं सपना
ओह सपना क फूल त
चमन में नहिये खिलल
कहीं विकास
त कहीं विनास भइल
कहीं घोटाला
त कहीं दिवाला भइल
जे घोटाला कइल
ओके जेहलो में ढुकावल गइल
त कुछ ना कइल गइल
जवले फांसी पर
झुला ना दिहल गइल।

इहे हउए लोकतंत्र क संस्कृति
इहे हऽ राज-काज ओकर नीति
सगरो विकास भइल जरूर
बाकी रउवा ई बतलाई
ए हुजूर
दू गो रोटी खातिर
हम कहवाँ जाईं?
जहवाँ आर्थिक अभाव बा
एकर सगरो प्रभाव बा
इहे बा कारन
कि हम पंजाब-दिल्ली-बम्बई
आ कलकत्ता तक जाईं
तब कहीं जाके रोजी आ रोटी पाईं
आजादी से पहिले
आ अब में
ना कवनो बा अन्तर
पहिले अंग्रेज लूट के
निहाल भइलन,
अब लूट रहल बानऽ
बापू के तीन बन्दर।
इहे बा कारन
कि देस जहन्नुम में जा रहल बा अन्दर
झण्डा बदल गइल
डंडा बा उहे
फिर बैतलवा डाढ़े पर
जे जन जन के दूहे
अजुवो हमार घर
बरसात में चू रहल बा
अजुवो पइसा क अभाव में
रोगी मू रहल बा

हे हुजूर!
रउवा हमरा खातिर झूठे
बहस पर बहस कराइलां
आ गरीबी रेखा से
ऊपर उठाइलां
आ देश के किसानन क
भाग चमकाइलां
एही आधार पर
वोट भंजाइलां
जहाँ नहर में पानी रहत नइखे
समय से बिजली रानी
आवत नइखे
समय से सोसाइटीन में
रसाइनिक खाद पहँचावत नइखे
त कइसे होइ इस देस क विकास
एक भाई रामविलास?
अब अइसने बा लागत
गर इहे रही हालत
त ऊ दिन दूर ना
जब घर-घर होई बगावत
राह चलत बात-बात में
एक दूसरा से खटकी
असली बात जरूर लिखब
भले घाव अस डभकी
आहि हो दादा!
ई कविता ओक ना बुझाई
जे दूसरा के मारत फिरेला मटकी
इ कविता त
ओही के बुझाई
जेकर गाड़ी सोरहो आना अँटकी
जब अमोल जिनगी
एहर से ओहर भटकी
हवा चली अइसन
रही ना इन्सान केहू
हैवान इस झपटी
कातिल सड़क पर
बेगुनाह फाँसी पर लटकी
जेही क हाथ सासन
ओके जानी आपन बपौती
छोड़ल चाही ना कुरुसी
भले खुल जाई जँगोटी।

हाय! हाय! रे आतंकवाद क लहर
जे ढाहत बा कहर पर कहर
गांव होखे भा सहर
ई आतंकवादी नफरत क आगि
जबले बुझी ना तबले ई धधकी
भले ज्ञान गंगा क लालटेन
भले आतंकवाद-विरोधी लालटेन
केतनो जरइब पोंछी-पाछी के
अबहीं ऊ लालटेन
जरी ना भभकी।
जब आतंकबादी
जहाजन के अपहरन कई के
दुनियां क कवनो सहर में
मिसाइल बना के पटकी
भले दुनियां क दिमाग
देखि देखि के चटकी
गर इहे रही हालत
त कवनो देश सान्ति से
आपन जिनिगी के ना निभा पाई
दुनियां क कोना-कोना में
ई उग्रवादी हलचल
जरूर मचाई।


सांच पूछीं त
दुनिया अब ऊ दुनियां
न रहि गइल
दुनियां क गरिमा संस्कार
ना जाने कहवां आजु
समुन्दर में जा हा के बहि गइल
सांच पूछीं त
दुनियां आजु अहंकार क भावना में
डँवाडोल हो गइल
सांच पूछीं त
अब नया इतिहास में
आतंकवाद-धर्मवाद-नस्लवाद
दुनियां क कवनो प्रजातंत्र खातिर
भुंइडोल हो गइल
हाय! हाय रे! आतंकवाद
हाय! हाय रे! समाजवाद
हाय! हाय रे! आदर्शवाद
कवन नारा लगाईं हम
जिन्दाबाद कि मुर्दाबाद
सांच पूछीं त
इहे बा कारन कि
लागत बा अइसन आजु
जेवनो कुछ बचल बा
बाबा-दादा क आबरू
हो जाई बरबाद
धन्यबाद-धन्यबाद-धन्यबाद