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लालन ! देखु आयौ काग / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
’लालन ! देखु आयौ काग।
खान पूआ हाथ तेरे मधुर अति बड़भाग॥
’देउँ पूआ ताहि, मैया ! देखु जाइ न भाज।
ढिंग बुलावहु काग, खेलौं तेहि सँग हौं आज’॥
लाल के सुनि बैन जननी रही काग निहोर।
आइ खावहुँ पूप, खेलहु लाल सँग, खगमौर॥