लालबत्ती पर हिजड़े / बाजार में स्त्री / वीरेंद्र गोयल
सिरजा गया तुम्हे
एक वरदान को भंग करने के लिए
पुरुष और प्रकृति से अलग
सदियों के सफर में
बदल गये सभी अर्थ
सभी संदर्भ, सभी कारण
अकारण ही बजाने लगे तालियाँ
देने लगे बधाइयाँ
कि पुरुष औ प्रकृति का संयोग सफल हुआ
अच्छा हुआ उनके जैसा और न हुआ
पर बदलते समय ने
सड़क पर ला खड़ा किया है
वाहनों के शीशे खटखटाते
लोगों के आगे हाथ फैलाते
उन पर अपनी दुआएँ बरसाते
ये रंगबिरंगी साड़ियों में लिपटे गरीब देवदूत
एक-दूसरे को सहारा देते
कपड़ों को बार-बार
बदन पर ठीक से बिठाते
नकली जूड़े को सिर पर ढंग से लगाते
लालबत्ती पर लोगों का सहारा देखते,
भीख माँगते हैं
पर नहीं दे सकता मैं भीख
दे सकता हूँ एक सीख
हाथ-पैरों को हिला
कमाकर खाना सीखो
भीख माँगना कानूनी अपराध है
अरे, माँगो तो कल्याणकारी राज्य से माँगो
सस्ता राशनकर्ड मिलेगा
गरीबी की रेखा से नीचे की रेखा मिलेगी
ठंडी अँधेरी रातों के लिए पटरियाँ मिलेंगी
गर्मियों में लू से भरे खुले मैदान होंगे
अगर उकता जाओ तो आसान मौत मिलेगी
ये भीख नहीं तुम्हारा संवैधानिक हक है
गण हो तुम तंत्र के
तुम्हारे अँगूठे के बल पर ही तो
ये लोकतंत्र टिका है
दानवीरता है अमीरों से छीनो
और गरीबों को दो
बीच में अपना कमीशन लो
मेरे एक रुपये से तुम्हारा क्या बनेगा
ना मैं गरीब हो पाऊँगा
ना तुम अमीर हो पाओगे
समानता कैसे आयेगी
जो भी इस मूल भावना के विरुद्ध है
अपराध है
चाहे वो विचार हो भीख का
या सीख का।