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लालसाएँ जागती / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
जीतना होगा हमें हर,पल मनुज व्यवहार पर ।
सोचना होगा वही जो, सत्य जीवन द्वार पर ।
जन्म लेते ही धरा पर , लालसाएँ जागती,
स्वप्न सजते माँ हृदय में,स्नेह युत शृंगार पर ।
भोर कर्मठ ही सजाते, हम सँवारे हर दिशा ,
सत्य पथ बढ़ना हमें है, कर्म के आधार पर ।
चैन से सोया नहीं जो आँधियों में एक पल,
है खड़ा निश्चल वही जो,जीत पाता हार पर ।
बो रहे वे बीज क्यों कर,भर हृदय अवसाद यूँ,
फेर लेंगे मुँह सभी इस ,व्यर्थ के कुविचार पर
बावला मन जी रहा है, बंधनों में भी सरस,
प्रेम का यह कुंज प्रतिपल,सज रहा सुविचार पर ।