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लाला-ज़ारों में ज़र्द फूल हूँ मैं / आबिद मुनावरी

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लाला-ज़ारों में ज़र्द फूल हूँ मैं
फ़स्ल-ए-गुल है मगर मलूल हूँ मैं

चाँद-तारों को रश्क है मुझ पर
तेरे क़दमों की सिर्फ़ धूल हूँ मैं

क्यूँ मुझे संगसार करते हो
कब ये मैं ने कहा रसूल हूँ मैं

नूर-ए-सर-मस्ती-ए-अबद हूँ मगर
मय-ए-शफ़्फ़ाफ़ में हुलूल हूँ मैं

रंज-ओ-ग़म क्यूँ न मेरी क़द्र करें
बे-ग़रज़ और बा-उसूल हूँ मैं

चाँदनी क्या पयाम लाई है
आज कुछ और भी मलूल हूँ मैं

सब के हक़ में हूँ शाख़-ए-गुल लेकिन
सिर्फ़ अपने लिए बबूल हूँ मैं

मुझ पे ही यूरिश-ए-अलम क्यूँ है
जब हक़ीक़त में तेरी भूल हूँ मैं

ग़म-ए-हिज्राँ ही वो सही 'आबिद'
कोई तो है जिसे क़ुबूल हूँ मैं