भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाल कुसमियां पुगाइयो मेरे बाबल / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाल कुसमियां पुगाइयो मेरे बाबल
झूला झूलण हम आई रे
अम्मां नै भेजा है नौ मन सोना
बाबल नै बटवा बटोर रे
भैया ने भेजा है नीला सा घोड़ा
भाभी का सब सिंगार रे
नौ मन सोना मैं नो दिन पहनूं
फट जाए बटवा बटोर रे
नीला सा घोड़ा मैं सदर दौड़ाऊं
भाभी का अचल सुहाग रे
अम्मां कहे मेरे नित उठ आवो
बाबल कहे छट मास रे
भैया कहे मेरे काज परोजन
भाभी कहे क्या काम रे
फट जाए धरती मैं बीच समा जाऊं
भाभी नै बोले हैं बोल रे
अम्मां के होते भाभी ने बोले
पीछे से क्या होगा हाल रे
अम्मां को कहना मेरी नमस्ते
बाबल को कहना प्रणाम रे
भैया को कहना युग युग जीवे
भाभी की गोदी में लाल रे
लाल कुसमियां पुगाइयो मेरे बाबल
झूला झूलण हम आई रे