लाल गुलाब के लिए / रणजीत साहा / सुभाष मुखोपाध्याय
मेरा भी प्रिय रंग है लाल
मेरा भी प्रिय फूल है गुलाब।
मैं लाल गुलाब के लिए ही
लड़ता रहा हूँ।
ज़रा आँखें उठाकर तो देखो
सागर से हिमालय तक
हमारा शोकाकुल प्रेम
तक रहा है
अपनी ही माटी की ओर।
आज तलक गुलामी की ज़ंजीरों के घाव
रिस रहे हैं,
सूख नहीं पाए साँसों के ताने-बाने
किसी सरगम में बँध नहीं पाए अब भी;
सर्वनाश की कगार से
यह पृथ्वी हमेशा की तरह
आज भी पीछे नहीं हट पायी।
खेलों की ऊबड़-खाबड़ ज़मीन की तरह
औंधा पड़ा है यह समय
इस पर चलते हुए-
तकलीफ़ होने पर भी
मुझे पता है कि इसके गर्भ में
डाले गए हैं बीज।
हमारे वर्तमान के समस्त अभिमान
जो निराश, आहत और अशान्त हैं
अपनी आँखों से आँसू पोंछकर
मनाएँगे, नवान्न का त्यौहार।
लाल गुलाब को-
अब अपनी आँखों में नहीं
अपने सीने में सँजोकर रखना होगा।
सीने में सहेजकर ही की जा सकेगी उसकी रक्षा।
मेरा प्रिय रंग है लाल
मेरा प्रिय फूल है
गुलाब।
अपने हृदय में साहस बटोकर,
उस लाल गुलाब के लिए ही ठाने हुए हैं हम
अपनी लड़ाई।