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लाल चिरैया / सुरेन्द्र स्निग्ध
Kavita Kosh से
लिये चोंच में
घास किरन की
पूरब में हर सुबह-सुबह क्यों
लाल चिरैया आती है?
बैठी मेरे घर की छत पर
देहरी पर
फिर धीरे-धीरे आँगन में भी
घास किरन की छितराती है
उछल-कूदकर शोर मचाती
दाना चुगती, पानी पीती
फिर किरनों की घास समेटे
लिए चोंच में
पच्छिम को उड़ जाती है।