भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाल चिरैया / सुरेन्द्र स्निग्ध

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लिये चोंच में
घास किरन की
पूरब में हर सुबह-सुबह क्यों
लाल चिरैया आती है?

बैठी मेरे घर की छत पर
देहरी पर
फिर धीरे-धीरे आँगन में भी
घास किरन की छितराती है

उछल-कूदकर शोर मचाती
दाना चुगती, पानी पीती
फिर किरनों की घास समेटे
लिए चोंच में
पच्छिम को उड़ जाती है।