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लाल बरामदा / ये लहरें घेर लेती हैं / मधु शर्मा
Kavita Kosh से
घर जब बना था
तो ख़याल नहीं था-
बरामदे का रंग
बेख़याली में ही चुना गया
लाल
वह उस वक़्त भी अखरा नहीं था
जब बुजुर्गों ने कहा-
यह लाल!
फिर बरामदे रँगे जाने लगे लाल
बाद में धुल-पुँछ कर
वे और चमकीले हुए
अख़रा वह तब
जब अंदाज़ा नहीं हुआ
कि फ़र्श पर
पानी गिरा है
या बह गया लहू!