भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लाल रँगवारे घेरदार घाँघरे सोँ घिरे / मानस
Kavita Kosh से
लाल रँगवारे घेरदार घाँघरे सोँ घिरे ,
नेक ना उघारे भारे सुखमा समूल हैं ।
जग जीत वारे पति प्रीति रीति वारे केधौँ ,
काम के नगारे उलटारे झपे झूल हैँ ।
उपमा अतूल पाय छोड़ि मति भूल बैन ,
मनसा कहे ते करैं कबिन कबूल हैँ ।
निरखे नितंब नीके वा नितंबनी के मानों ,
जंघ जुग कदली के थंभ भूल मूल हैं ।
मानस का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।