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लाल सिंह दिल की चिट्ठी / लालसिंह दिल / प्रितपाल सिंह
Kavita Kosh से
समराला नहीं रहता अब मैं
पता बदल गया है
नया अभी मिला नहीं
बस्ती यह भी पूछती है
पहले क्या काम करते थे
मर भी गया तो
मौत में मरकर भी नहीं मरा
जल भी गया तो
आग में जलकर भी नहीं जला
नहीं मिलता जब तलक नया पता
चिट्ठी-पत्री
कविता के मार्फ़त करना