भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लाल सिंह दिल की चिट्ठी / लालसिंह दिल / प्रितपाल सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समराला नहीं रहता अब मैं
पता बदल गया है
नया अभी मिला नहीं
बस्ती यह भी पूछती है
पहले क्या काम करते थे
 
मर भी गया तो
मौत में मरकर भी नहीं मरा
जल भी गया तो
आग में जलकर भी नहीं जला
नहीं मिलता जब तलक नया पता
चिट्ठी-पत्री
कविता के मार्फ़त करना