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लाल / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
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घिरा अँधियारा होवे दूर।
जाय बन उजली काली रात।
चाँद सा मुखड़ा जिसका देख।
जगमगाये तारों की पाँत।1।
जाय खुल बन्द हुई सब राह।
बसें फिर से उजड़े घर बार।
लग गये जिसका न्यारा हाथ।
देस का होवे बेड़ा पार।2।
जाय भर जी में नई उमंग।
हित भरी सुन कर जिसकी तान।
मंत्र सा जो कानों में फूँक।
डाल देवे जानों में जान।3।
रुके जिससे आँसू की धार।
जाय जुड़ जिससे टूटी आस।
दूर होवे भूखे की भूख।
बुझे जिससे प्यासों की प्यास।4।
जाति में जो भर देवे जोत।
दिया अंधी आँखों में बाल।
भरे जिससे माता की गोद।
मिलेगा कब हमको वह लाल।5।