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लाल / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
ताकि तुम तोड़ सको मुझे अपनी शाख़ से
मेरे होंठ लाल हैं
यह ग्रीष्म है
प्रेम आगे जा रहा है
और पीछे हट रहा है
जैसे शीतल जल
रेगिस्तान की रेत पर
मेरे हाथ
देह को खींच रहे हैं
तुम तक पहुँचने के लिए
उँगलियाँ अपने निशान छोड़ रही हैं
तुम्हारी निगाह के शीशे पर
- यह मौसम बगीचा होना चाहिए
तुम्हे स्पर्श करने का -
( तुम ...जो एकान्त देह हो
मेरी आत्मा की )
अब तुम चुन सकते हो
उन फूलों को
जो खिल रहे हैं मेरी देह में ।