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ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है / साग़र सिद्दीकी
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ला इक ख़ुम-ए-शराब कि मौसम ख़राब है
कर कोई इंक़लाब कि मौसम ख़राब है
ज़ुल्फ़ों को बे-ख़ुदी की रिदा में लपेट दे
साक़ी पए-शबाब कि मौसम ख़राब है
जाम-ओ-सुबू के होश ठिकाने नहीं रहे
मुतरिब उठा रुबाब कि मौसम ख़राब है
ग़ुंचों को ए'तिबार-ए-तुलू-ए-चमन नहीं
रुख़ से उलट नक़ाब कि मौसम ख़राब है
ऐ जाँ ! कोई तबस्सुम-ए-रंगीं की वारदात
फीका है माहताब कि मौसम ख़राब है