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ला तूर एफ़्फैल / विष्णुचन्द्र शर्मा
Kavita Kosh से
पारी का हृदय है
उस हृदय की
डायरी चारों ओर
खुली है।
पारी की यादों का
खज़ाना
मोती के दानों-सा
बिखरा है।
मेरी आँखों में
इतिहास के
कई दौर उतर रहे हैं।
मैं ऐफ़्फैल की
ऊँचाई में
पारी की कहानी
पढ़ रहा हूँ।
कला यहाँ
चौकन्नी है
और कलाकार चकित है।
मैं
आकाश तक
ला तूर ऐफ़्फै़ल
का धज हूँ।
ऊँचाई बांधती है
मन को।
मैंने हर पुराने
महल से
छुआ है
ला तूर ऐफ़्फै़ल को।
वह लड़की
अपनी हथेली पर
रखती है
ला तूर ऐफ़्फ़ैल को।
मैं
नीचे से ऊँचाई तक
दौड़ रहा हूँ।
कलाकार आलेक्सांद्र
लेटकर
झुककर
या घुटनों के बल बैठकर
मेरी और ला तूर ऐफ़्फैल की
तस्वीरें खींच रहा है
आसपास
समय
ठहर गया है
एकाएक।